Sunday, May 8, 2016

समन्वय की चेतना

समन्वय मानव चेतना का मूल विचार है । मानव ने जो कुछ उत्तम और श्रेष्ठ पाया है इसी के बल पर पाया है । क्योंकि दुनिया कभी भी एक रंग से नहीं रंगी जा सकती है , इतिहास प्रमाण है ...... जो भी विचार या समुदाय आए वो कई भागो मे विभाजित हो गए । इस लिए इन विचारो मे समन्वय आवश्य होना चाहिए तभी समाज सार्थक होगा अन्यथा एक विभंजकारी विनाशक व्यवस्था जन्म लेगी जिसका खाड़ी देश प्रत्यक्ष उदाहरण है । भारत वर्ष के महापुरुष बुद्ध ने तो इसको केंद्र मे रख पूरा एक संप्रदाय ही खड़ा कर दिया । बाद मे अंबेडकर और लोहिया इस समन्वयवाद के बड़े पक्षधर हुये । परंतु वर्तमान समय मे पूरा का पूरा एक सामाजिक वर्ग खड़ा हो गया है जो समन्वय की जगह संघर्ष पर ज्यादा बल दे रहा है इससे उसका जो भी हित सध जाये पर समाज का भारी अहित हो रहा है ।

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